December 9, 2015

New experiments in my life

2 दिसम्बर 2015 - अपने आफिस में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं खेलकूद प्रतियोगिता आयोजित करवाने की जिम्मेदारी मेरी थी। मैंने पहले ही से पूरी तैयारी कर लिया था। मुझे सचिन सर की एक बात याद थी। उन्होंने एक बार कहा था- दूसरे से उम्मीद मत करो, जितना तुम खुद कर सकते हो, उतना करने की कोशिश करो। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने यह कार्यक्रम करने के लिए पूरी मेहनत किया। कार्यक्रम में कुल 46 बच्चे शामिल हुए। मैंने सारी प्रतियोगिताएं करवाया। अंत में पुरस्कार वितरण समारोह का संचालन भी मैंने ही किया। अक्सर अपना नाम बताने से बचने की कोशिश करने वाला, मंच पर जाने की सोचकर घबरा जाने वाला मैं, खुद मंच से पूरे कार्यक्रम का संचालन कर रहा था। इस कार्यक्रम में कई बच्चे, पैरेन्ट्स और टीचर आए हुए थे। एक बात गौर करने वाली थी कि किसी को भी मेरी हकलाहट से कोई खास मतलब नहीं था। मैं बीच-बीच में हकलाकर बोल रहा था, कहीं-कहीं बाउंसिंग तकनीक का इस्तेमाल कर रहा था। यह दिन मेरे लिए एक नई सीख और नया अनुभव लेकर आया।


4 दिसम्बर 2015 - आफिस में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों का एक कैम्प आयोजित किया गया। इस कैम्प में 264 बच्चे आए। हर किसी की उम्मीद से कहीं ज्यादा। कैम्प की सारी व्यवस्था मैंने ही किया। कैम्प काफी अच्छा रहा। अंत में बड़ा सुकून मिला। साथ ही यह सीख मिली की अगर हम व्यवस्थित होकर किसी काम की तैयारी करें, भले ही हमारा साथ देने वाला कोई भी न हो तो भी हम सफल जरूर होते हैं।

6 दिसम्बर 2015 - आफिस की व्यस्तता से फुरसत होने के बाद मैं 5 दिसम्बर, 2015 की शाम रेल से कानपुर के लिए निकला। वहां पर मेरे कजन ब्रदर की शादी थी। शादी की शाम 6 दिसम्बर, 2015 को बारात में मैंने डांस करने का साहस दिखाया। जी भरकर डांस किया। जितने बाराती थे उनमें से सबसे ज्यादा मैं ही नाचा। इसके पहले मैं कभी खुले में डांस करने का साहस नहीं कर पाया। यहाँ तक की 15 साल पहले अपने बड़े भाई के विवाह में भी नहीं... अक्सर सोचता था, मैं तो हकलाता हूँ, मैं क्या डांस करूँगा? मुझे तो डांस करना आता नहीं, पता नहीं लोग क्या सोचेंगे? जबकि सच तो यह है कि हममें से कई लोगों को डांस करना नहीं आता, फिर भी अपने दोस्त, रिश्तेदार की शादी में नाचते जरूर हैं। इस शादी का मैंने भरपूर आनन्द लिया।

7 दिसम्बर 2015 - कानपुर से वापस लौटने के लिए मैंने गरीब रथ एक्सप्रेस का रिजर्वेशन करवाया था। निर्धारित समय में ट्रेन स्टेशन पर आ गई। उसमें सवार होने के बाद मेरे आसपास बैठे लोग राजनीति, देश-दुनिया, धर्म आदि विषयों पर चर्चा करने लगे। मैं खामोशी से सबकी बातें सुनता रहा। धैर्य से सुनना कितना जरूरी है, यह मैंने इस ट्रेन में सवार होकर बेहतर तरीके से समझ पाया। 3 घण्टे ट्रेन एक जगह रूक गई। कुछ देर बाद पता चला की आगे एक मालगाड़ी पटरी से उतर गई है। हमारी ट्रेन अब आगे नहीं जा पाएगी। ट्रेन को बैक लिया गया। किसी दूसरे रूट से ट्रेन चल पड़ी। रातभर के सफर के बाद दूसरे दिन 8 दिसम्बर, 2015 को मैं अपने घर पहुंचा। 6 घंण्टे का ट्रेन का सफर 18 घण्टे में पूरा हुआ। खुशी की बात तो यह है कि रेल्वे ने अपनी जिम्मेदारी काफी समझदारी से निभाते हुए सभी यात्रियों को सुरक्षित उनके गंतव्य तक पहुंचाया। यही तो है भारतीय रेल और उसके कर्मठ कर्मचारियों की सफलता। इससे सीख मिली की राह में चाहे कितनी ही कठिनाईयों क्यों न हो, सूझबूझ से उनका सामना करना ही सफलता का मूलमंत्र है।

- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
0 9 4 2 4 3 1 9 9 6 8


3 comments:

Satyendra said...

Beautiful!
This was made possible by YOUR sincere efforts to learn and PRACTICE communication skills in different situations offered by TISA and others..
You have also now proved to yourself that world does not care about stammering: it cares only
about what it can get from you. Your success represents the success of self help..
Congratulations, Amit!

ABHISHEK said...

Very inspiring Amitji :)

Satyendra said...

एक दो बातें सीधे दिल में घर कर गयी .. आपने पूरी तय्यारी करी कार्यक्रम से पहले! ये कदम अक्सर हम लोग भूल जाते हैं! दूसरी बात आप ने अपने आप को इस कदर स्वीकार कर लिया था कि हक़लाने या ना हकलाने का ख्याल उस समय दिमाग में नहीं था.. सिर्फ कार्यक्रम को अच्छे ढंग से अंजाम देना ही आपके मन में सर्वोपरि भाव था !
और तीसरी बात जो मुझे बहुत अच्छी लगी - आप सेल्फ-हेल्प को सिर्फ इतवार की SHG तक सीमित ना रख के उसे अपने दिन ब दिन काम का हिस्सा भी बनाते जा रहे हैं.. इस सूरते हाल में अगर आप को सफलता मिले तो क्या आश्चर्य ! न मिलती तो मै जरुर हैरान होता..
लगे रहे और अपने अनुभव इसी तरह बाँट ते रहे..
अभी अभी एक फिल्म देख कर उठा जिसका एक विचार बाँटना चाहूँगा: The mastery has three phases: Being, Knowing, Doing. (The Grandmaster, 2013) (I might add- Sharing; but for some, sharing may be just another way of Doing itself..)

धन्यवाद